कोविड के अनजान शिकार- भारत की विदेश नीति और विदेश मंत्रालय अपना काम करने में नाकाम

भारत को विश्व के तमाम देशों के साथ संपर्क करना चाहिए जो चीन का विकल्प तलाशने में रूचि रखते हैं लेकिन महामारी ने विदेश मंत्रालय को उलझाए रखा.


विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी |

कोरोनावायरस महामारी की दूसरी लहर अर्थव्यवस्था को गंभीर रूप से प्रभावित कर रही है और जो भी हरी कोंपलें फूटनी शुरू हुईं थीं, वो फिर से मुरझा गईं लगती हैं. लगता है कि लॉकडाउन और उसके कमज़ोर करने वाले परिणामों से भारत की विदेश नीति और अंतर्राष्ट्रीय रिश्तों की रणनीतियां भी प्रभावित हुई हैं. रायसीना डायलॉग के बुझे हुए से आयोजन को देखते हुए साफ ज़ाहिर है कि अहम वैश्विक मुद्दों पर विचार-विमर्श और वैश्विक नियम बनाने की प्रक्रिया में भारत की भूमिका अभी भी अधूरी है.

रायसीना डायलॉग विदेश मंत्रालय (एमईए) की ओर से अंजाम दी जाने वाली बहुत सी गतिविधियों में से एक है. महामारी और लॉकडाउन के शुरूआती दौर में स्वास्थ्य संकट से लड़ने के लिए मंत्रालय को पीपीई किट्स और मास्क जैसी, बुनियादी ज़रूरतों की तलाश करनी पड़ी थी. हमारे स्वास्थ्य ढांचे की स्थिति ऐसी दुखद थी कि देश में ऐसी बुनियादी ज़रूरतें भी नहीं थीं. लेकिन वैक्सीन्स के उत्पादन और वैक्सीन से जुड़े मुद्दों पर तकनीकी जानकारी के आदान-प्रदान ने भारत को एक ऐसे नए पायदान पर खड़ा कर दिया, जो बाकी विकसित दुनिया से बहुत ऊपर है.

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