ताकि ये पता चल सके कि गंगा में संक्रमित शवों डालने से इसकी शुद्धता पर क्या असर पड़ा। शवों की वजह से कही इसमें रहने वाले जलीय जीवों या वनस्पतियों पर तो असर नहीं पड़ा। सीधे गंगा का पानी पीने और अन्य कामों में इस्तेमाल करने वाले लाखों लोगों की सेहत पर इसका क्या असर रहा। एनएमसीजी की कोऑर्डिनेटर और भारतीय वन्यजीव संस्थान की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. रुचि बडोला के अनुसार, करीब दो हजार स्थानीय ग्राम प्रहरी और करीब डेढ़ सौ विशेषज्ञों की मदद ली जा रही है। ये टीम उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल में गंगा किराने वाले इलाकों में काम कर रही है।
लोगों के बीमार होने का खतरा सबसे ज्यादा
डॉ. रुचि बडोला के अनुसार, गंगा जिन पांच राज्यों से गुजरती है। वहां इसके किनारों पर बसे लाखों लोग गंगाजल को सीधे पीने में भी इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा नहाने और कपड़े धोने में भी इसका इस्तेमाल होता है, लेकिन अगर लोग कोविड संक्रमित शव गंगा में डालते हैं तो इससे पानी प्रदूषित होगा। इसका सीधा असर इन लोगों की सेहत पर पड़ेगा। इनको कई तरह की गंभीर बीमारियों हो सकती हैं। गंगा और उसके आसपास रहने वाले जीव जंतुओं व वनस्पतियों पर भी असर पड़ेगा। हालांकि ये शोध का विषय है, लेकिन इसे लेकर लोगों को जागरूक किया जा रहा है।
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