यह मामला मोरीगांव जिले के दक्षिण धर्मातुल गांव का है। 'The New Indian Express' की एक रिपोर्ट के मुताबिक आधा दर्जन से ज्यादा लोगों ने मीडिया के सामने आकर यह बात कबूल की है कि उन्होंने अपनी किडनी बेच दी है। बताया जा रहा है कि इस गांव के ज्यादातर लोग किसान हैं या फिर दैनिक मजदूर और ये सभी कोरोना महामारी की वजह से लॉकडाउन लगने के बाद काफी आर्थिक परेशानियों से गुजर रहे थे।
कुछ लोगों का कहना है कि लोन चुकाने के लिए उन्होंने अपनी किडनी बेची है। कुछ लोगों ने मीडिया के सामने यह बताया है कि अपने परिवार के सदस्य के इलाज के लिए उन्होंने अपनी किडनी बेची है। किडनी बेचने वालों में से कुछ लोगों ने मीडिया को बताया कि किडनी रैकेट चलाने वाले लोग उन्हें लेकर कोलकाता लेकर गये थे जहां उनकी सर्जरी की गई थी। अभी हाल ही में गांव के लोगों ने इस किडनी रैकेट में शामिल एक कथित एजेंट और तीन अन्य लोगों को पकड़ कर पुलिस के हवाले किया है। पुलिस ने इस रैकेट की पुष्टि की है।
मोरीगांव की पुलिस अधीक्षक अपर्णा नटराजन ने बताया है कि इस मामले में 2 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। जिसमें एक महिला भी शामिल है। कितने लोगों ने अब तक अपनी किडनी बेची है? इसकी संख्या को लेकर पुलिस ने अभी कुछ भी नहीं कहा है। पुलिस अधीक्षक ने कहा है कि इस संबंध में सभी सूचनाएं राज्य की संबंधित कमेटी को सौंपी गई है और मामले की जांच की जा रही है।
मिली जानकारी के मुताबिक इस रैकेट में शामिल जिस कथित एजेंट को पकड़ा गया है उसका नाम लिलीमई बोडो है। लिलीमई गुवाहाटी का रहने वाला है। उसे गांव वालों ने उस वक्त पकड़ा जब वो गांव में अपनी किडनी बेचने वाले गरीब इच्छुक लोगों की तलाश में भटक रहा था। स्थानीय लोगों का आरोप है कि लिलीमई यहां गरीब लोगों को किडनी के बदले 4-5 लाख रुपए देने का लालच देता था। हालांकि, वो डेढ़ लाख रुपए कमीशन के तौर पर भी लेता था। श्रीकांत दास नाम के एक युवक ने बताया है कि उन्होंने अपने बेटे के इलाज के लिए एक किडनी बेची है। उन्होंने बताया कि उन्हें 5 लाख रुपए का लालच दिया गया था। लेकिन एक किडनी निकालने के बाद उन्हें सिर्फ साढ़े तीन लाख रुपए ही मिले।
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