अश्विनी अय्यर तिवारी (Ashwiny Iyer Tiwari) का नाम उन निर्देशकों में शुमार है, जिन्होंने कम प्रोजेक्ट्स के बाद भी अपने लिए एक अलग जगह बना ली है। "निल बट्टे सन्नाटा", "बरेली की बर्फी" और "पंगा" जैसी फिल्मों का निर्देशन कर चुकीं अश्विनी इन दिनों अलग- अलग वजहों से चर्चा में हैं। ऐसे में अश्विनी ने हिन्दुस्तान के साथ खास बातचीत की और कई सवालों के जवाब दिए।
'मैपिंग लव' का आइडिया मुझे बहुत सालों से था और बतौर एक स्टोरी टेलर हमारे पास बहुत से स्टोरी आते- जाते रहते हैं। मैपिंग लव, ऐसी ही एक कहानी थी, जो मुझे लगा था कि जब मैं रिटायर हो जाऊंगी तो लिखना शुरू करूंगी। क्योंकि लिखाई की कोई उम्र नहीं होती। हालांकि मैंने लिखना शुरू कर दिया था तीन साल पहले। करीब 5-6 चैप्टर्स के बाद मैंने इस छोड़ दिया, क्योंकि मैं बिजी हो गई। लेकिन जब कोविड हुआ, तो हमारे पास दो रास्ते थे एक कि क्या हम अच्छा कर सकते हैं और दूसरा ये था कि सिर्फ इस पर रोते रहें। तो मैंने ऑप्शन वन चुना और सभी के लिए प्रेयर किया और मैपिंग लव लिखना शुरू किया। मार्च में शुरू किया और दिसंबर में इसे खत्म कर दिया।
लिएंडर पेस और महेश भूपति बहुत अच्छे इंसान हैं, उन्हें लगा कि हम उनकी कहानी बयां कर सकते हैं। तो उसके लिए उनको बहुत धन्यवाद। ये पहली बार जब मैंने और नितेश ने साथ में काम किया। पैंडेमिक जब थोड़ा खुला तो हमने इसे शूट कर लिया। हमें भी बहुत मजा आया, मैंने और नितेश ने भी डबल्स खेला।
सोनी लिव के 'फाडू' के साथ ओटीटी स्पेस में डेब्यू करने के लिए भी तैयार हैं, इसके बारे में कुछ बताएं?
'फाडू' एक बहुत प्यारी लव स्टोरी है। ये एक मेल सेंट्रिक फिल्म है, जिस में मैं सोनी लिव के साथ जुड़ रही हैं। ये कहानी सौम्य जोशी की है, जो एक बड़े कवि और राइटर हैं। मैं पहली बार किसी ऐसे राइटर के साथ काम कर रही हूं, जो काफी अलग सोचते हैं। ये एक अच्छा चैलेंज है। इसका प्री- प्रोडक्शन शुरू हो गया है।
आप श्री नारायण मूर्ति और उनकी पत्नी सुधा मूर्ति की लाइफ स्टोरी पर भी काम करेंगी? ये प्रोजेक्ट कब तक शुरू हो जाएगा?
इनकी स्टोरी का स्क्रीनप्ले अभी लिखा जा रहा है, जो जल्दी ही खत्म हो जाएगा। पैंडेमिक की वजह से सब कुछ डिले हैं। बाकी हमें उनसे मिलने जाने बैंगलोर जाना होगा, तो इसमें तो अभी टाइम है। बाकी फाडू तो शुरू कर रही हूं। हाल फिलहाल में पैंडेमिक हालातों के चलते कुछ भी बहुत सही से कह पाना थोड़ा मुश्किल है। मैं दुआ करती हूं कि कोरोना की तीसरी वेव न आए, लेकिन कुछ भी कह पाना मुश्किल है। तो ऐसे में सभी प्लान्स धरे रह जाते हैं।
क्या आप और नितेश तिवारी, एक दूसर से अपने आइडियाज और प्रोजेक्ट्स डिस्कस करते हैं? घर पर इससे जुड़ा माहौल कैसा रहता है?
मुझे ऐसा लगता है कि हमारे फिल्म मेकिंग का तरीका काफी अलग है। वहीं ऐसा हो नहीं सकता कि एक ही फील्ड के दो लोग घर पर हैं तो बात नहीं होगी। लेकिन हम एक दूसरे के काम और स्पेस को रिस्पेक्ट करते हैं। जब भी कोई आइडिया आता है तो हम सबसे पहले एक दूसरे को ही बताते हैं। वहीं जब कोई फिल्म बनती है, तो खुशी की बात है कि फर्स्ट कट सबसे पहले मैं देखती हूं। बाकी फीडबैक तो सभी को पसंद है।
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