पूर्व मंत्री रहे जयभान सिंह पवैया ने टीवी 9 भारतवर्ष से बातचीत में कहा है कि इस नाम का कोई इतिहास नहीं है इसलिए ये नाम भी नहीं होना चाहिए. पवैया ने होशंगाबाद और दूसरे जिलों के नामों को लेकर भी आपत्ति जाहिर की है. उनसे पहले बीजेपी के कई बड़े नेता मध्य प्रदेश के कई जिलों के नाम बदलने की पेशकश कर चुके हैं.
कांग्रेस जता रही है आपत्ति
नाम बदलने को लेकर हो रही सियासत में अब कांग्रेस भी कूद पड़ी है. कांग्रेस के विधायक पीसी शर्मा ने आपत्ति जाहिर करते हुए कहा है कि पवैया के पास और कोई काम नहीं है इसीलिए नाम बदलने की मांग कर रहे हैं. वहीं कांग्रेस विधायक आरिफ मसूद ने कहा है कि कोरोना से कई लोगों की जान गई है. उन पर पैसा खर्च किया जाए, ना कि नाम बदलने जैसी फिजूलखर्ची की जाए.
1979 में बना था हबीबगंज रेलवे स्टेशन
1901 भारत की 42 रियासतों के स्वामित्व वाले रेलवे को जोड़कर इंडियन रेलवे का गठन हुआ था. 1947 में आजादी के बाद भारतीय रेल का 55 हजार किलोमीटर का नेटवर्क था. 1952 में मौजूदा रेल नेटवर्क को एडमिनिस्ट्रेटिव पर्पज के लिए 6 जोन में डिवाइड किया गया. इसके बाद कई स्टेशन बनाए गए जिनमें हबीबगंज भी शामिल था. 1979 में हबीबगंज रेलवे स्टेशन का निर्माण किया गया था.
ऐसा पड़ा था हबीब से हबीबगंज नाम
हबीबगंज का नाम हबीब मियां के नाम पर रखा गया था, पहले इसका इसका नाम शाहपुर था. हबीब मियां ने 1979 में स्टेशन के विस्तार के लिए अपनी जमीन दान में दी थी. इसके बाद इसका नाम हबीबगंज रखा गया था. उस समय आज के एमपी नगर का नाम गंज हुआ करता था. ऐसे में हबीब और गंज को जोड़कर तब इसका नाम हबीबगंज रखा गया था.
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