जरूरी प्रक्रिया पूरा करने के बाद शवों को सौंपने के लिए मृतकों के परिजनों को बुलाया गया। शीलाबाई के देवर नारायण भी अस्पताल पहुंचे। चूंकि मौत कोरोना के कारण हुई थी, तो उन्हें शव दिखाकर भदभदा श्मशान भेज दिया गया, जहां 3 बजे अंतिम संस्कार कर दिया गया।
इसके बाद जब 4 बजे नफीसा के बेटे अब्दुल अस्पताल पहुंचे तो उन्होंने शव को पहचानने से इनकार कर दिया। हालांकि शव पर नफीसा बी का नाम लिखा था। इसके बाद अस्पताल परिसर में हंगामा मच गया। अस्पताल प्रबंधन के हाथ-पांव फूल गए। आनन-फानन में नारायण को बुलाया गया, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। उन्होंने शव का अंतिम संस्कार कर दिया था।
नारायण जब अस्पताल पहुंचे तो उन्होंने देखा कि शव तो उनकी भाभी शीलाबाई का है। हालांकि दोनों परिवार के लोगों को यह बात समझ में आ गई कि शवों की अदला-बदली हो गई है। नारायण ने नफीसा का अंतमि संस्कार शीला समझकर कर दिया था, जिसके लिए उन्होंने अब्दुल से माफी मांगी। बाद में अब्दुल अस्थियों को सुपुर्द-ए-खाक के लिए राजी हो गए। इस मामले में अस्पताल प्रबंधन ने दो कर्मचारियों को सस्पेंड कर दिया है।
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