क्लाइमेट चेंज की वजह से मॉनसून सीजन में आसमां गिरा रहा है मौत की बिजलियां, जानें क्या बोले एक्सपर्ट


प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करना एक न एक दिन भारी जरूर पड़ने वाला है। क्लाइमेट चेंज की वजह से मानसून सीजन में आकाशीय बिजली गिरनी की घटनाओं में बृद्धि देखने को मिली है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) और डाउन टू अर्थ द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि इस साल अप्रैल 2020 और मार्च के बीच भारत में 18.5 (1 करोड़ 84 लाख) मिलियन बिजली गिरनी की घटनाएं देखी गई हैं।

इस साल और पिछले साल की तुलना की जाए तो लगभग 37 फीसदी की वृद्धि देखने को मिली है। पिछले साल 13.8 (138 लाख) मिलियन बोल्ट आकाशीय बिजली गिरी थी। पिछले साल मार्च से इस साल अप्रैल के बीच बिजली गिरने से 1,697 लोगों की मौत हो गई थी। विशेषज्ञों का मानना ​​है कि बिजली गिरने की घटनाओं में वृद्धि जलवायु परिवर्तन के कारण हो रही है। इस बात के वैज्ञानिक प्रमाण बढ़ रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन से दुनिया भर में बिजली चमक रही है। डाउन टू अर्थ के प्रबंध संपादक रिचर्ड महापात्रा कहते हैं इसके पीछे तेजी से शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि भी जिम्मेदार है। 

इन राज्यों में बिजली गिरने की घटनाओं में तेजी

हाल के महीनों में पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और पुडुचेरी जैसे राज्यों में बिजली गिरने की घटनाओं में अचानक तेजी आई है। पंजाब में ऐसी घटनाओं में 331 फीसदी वार्षिक वृद्धि देखी गई है, जबकि बिहार में इस साल के दौरान बिजली गिरने से 401 लोगों की जान चली गई है। रिकॉर्ड 168 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है।

तापमान में वृद्धि बड़ी वजह

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने गरज के साथ बिजली गिरने (आमतौर पर प्री-मानसून और मानसून के महीनों में) देखने को मिलता है। 2015 में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय द्वारा किए गए एक अध्ययन में अनुमान लगाया कि औसत वैश्विक तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से बिजली की फ्रीक्वेंसी कम से कम 12 फीसदी बढ़ जाएगी। जर्नल एटमॉस्फेरिक केमिस्ट्री एंड फिजिक्स में हाल ही प्रकाशित होने वाले एक पेपर में यह भी चेतावनी दी गई है कि भारत में बिजली गिरने की फ्रीक्वेंसी हर साल 10 से 25 फीसदी तक बढ़ने की उम्मीद है और सदी के अंत तक 50 फीसदी तक बढ़ सकती है।

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