दिल्ली हाईकोर्ट ने स्कूल फीस मामले में दिल्ली सरकार के आदेशों को रद्द करने के मामले में सुनवाई की. इस दौरान याचिकाकर्ताओं के वकील ने बताया कि संविधान के अनुसार शिक्षा कोई सामान्य व्यवसाय नहीं है. ये एक विशेष व्यवसाय है. इसके अनुसार शिक्षा में मुनाफा कमाने की इजाजत नहीं है.
दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने स्कूल फीस मामले (Private School Fees case) में शुक्रवार को दिल्ली सरकार औऱ छात्रों द्वारा दायर याचिका में सुनवाई की. दिल्ली सरकार द्वारा 18 अप्रैल और 28 अगस्त 2020 को जारी दो आदेशों को रद्द करने के मामले में एक जज की बेंच में सुनवाई की. दिल्ली सरकार ने कोरोना वायरस लॉकडाउन के बीच निजी स्कूलों में वार्षिक शुल्क औऱ विकास शुल्क जमा करने पर रोक लगाई थी.
मामले में शनिवार को अधिवक्ता खगेश झा ने जस्टिस फॉर ऑल एनजीओ और अन्या प्राइवेट याचिकाकर्ताओं की ओर से अपनी दलीलें पेश की. उन्होंने कहा कि टीएमए पाई फाउंडेशन बनाम कर्नाटक राज्य के फैसले ने स्कूल फीस को विनियमित करने के दायरे को प्रतिबंधित कर दिया. इसका उद्देश्य छात्रों और अभिभावकों के शोषण की अनुमति देना नहीं था.
शिक्षा संविधान के एक व्यवसाय हो सकता है लेकिन…
झा ने आगे कहा कि शिक्षा संविधान के अनुच्छेद 19 (1)(जी) के तहत एक व्यवसाय हो सकता है. हालांकि ये एक सामान्य व्यवसाय नहीं है. ये एक विशेष व्यवसाय है. जो मुख्य रूप से चैरिटेबल है. वहीं कोर्ट ने मामले में कहा कि शिक्षा विभाग के पास ऐसे गैर-सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थानों द्वारा फीस तय करने और वसूलने का अधिकार है. ताकि उनके द्वारा शिक्षा का व्यवसायीकरण रोका जा सके. ये देखते हुए कि आदेशों द्वारा कोई निषकर्ष दर्ज नहीं किया गया कि वार्षिक शुल्क और विकास शुल्क के जरिए प्राइवेट स्कूल मुनाफाखोरी या कैपिटेशन फीस इकट्ठा कर रहे थे.
15 प्रतिशत ट्यूशन फीस कटौती का मामला
वहीं दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अन्य मामले में एक गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों द्वारा ली जाने वाली ट्यूशन फीस में कथित रूप से 15 प्रतिशत की कटौती करने के एकल-न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ अपील पर शुक्रवार को दिल्ली सरकार से जवाब मांगा.
मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ 450 से अधिक स्कूलों का प्रतिनिधित्व करने वाली ‘एक्शन कमेटी अनएडेड रिकॉग्नाइज्ड प्राइवेट स्कूल’ की अपील पर नोटिस जारी किया. एकल न्यायाधीश के आदेश में गैर-सहायता प्राप्त निजी स्कूलों को पिछले साल राजधानी में लॉकडाउन समाप्त होने के बाद की अवधि के लिए छात्रों से वार्षिक और विकास शुल्क लेने की अनुमति दी गई थी.
हमने सोचा था कि हम पूरी तरह से जीत गए…
एक्शन कमेटी के वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने कहा कि हमने सोचा था कि हम पूरी तरह से जीत गए हैं. उन्होंने अपने अभिवेदन में कहा कि उनकी चुनौती दिल्ली सरकार द्वारा एकल न्यायाधीश के आदेश की गलत व्याख्या किए जाने तक सीमित है.
दीवान ने कहा कि एकल न्यायाधीश और इस अदालत की खंडपीठ द्वारा पारित आदेशों को निष्प्रभावी करने के लिए एक जुलाई को परिपत्र जारी किया गया था. उन्होंने अदालत से एकल न्यायाधीश के आदेश के दायरे को स्पष्ट करने का आग्रह किया.
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