जनरल नरवणे ने कहा, ''विध्वंसकारी प्रौद्योगिकियां आधुनिक दुनिया के चरित्र को पहले से कहीं ज्यादा तेजी से बदल रही हैं। हमने दुनिया भर में हालिया संघर्षों में इन प्रौद्योगिकियों के निर्णायक प्रभाव को देखा है।''
उन्होंने कहा, ''हमारे दो पड़ोसियों के साथ उत्तर और पूर्व में हमारी सक्रिय और विवादित सीमाओं को देखते हुए, सशस्त्र बलों की क्षमता का विकास एक राष्ट्रीय अनिवार्यता है।'' सेना प्रमुख ने आगे कहा कि अन्य देशों के साथ विशिष्ट प्रौद्योगिकियों पर निर्भरता ''विशेष रूप से संघर्ष के समय में महत्वपूर्ण कमजोरियां'' पैदा करती हैं, और बिसाग-एन के साथ भारतीय सेना का सहयोग इन चुनौतियों का समाधान अंदरुनी तरीके से करने की दिशा में एक लंबा रास्ता तय करेगा।''
थल सेना प्रमुख ने कहा कि बिसाग-एन और आरआरयू के साथ भारतीय सेना का सहयोग सरकार के ''आत्मनिर्भर भारत'' के दृष्टिकोण से जुड़ा है और रक्षा क्षमता विकास में ''नागरिक-सैन्य सहयोग'' का मार्ग प्रशस्त करेगा। सेना प्रमुख ने कहा कि दोनों (नागरिक और सैन्य) के बीच सहयोग विकासशील प्रौद्योगिकी, जीआईएस और आईटी आधारित सॉफ्टवेयर प्रणाली के विकास, प्रशिक्षण सामग्री और ऑडियो-विजुअल सामग्री के प्रसारण के क्षेत्र में हैं।
जनरल नरवणे ने कहा, ''आधुनिक युद्ध की चुनौतियों का सामना करने के लिए शैक्षणिक शक्ति को परिचालन समझ के साथ समृद्ध करने की आवश्यकता है।'' कार्यक्रम की अध्यक्षता एआरटीआरएसी के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ (जीओसी-इन-सी) लेफ्टिनेंट जनरल राज शुक्ला ने की। आरआरयू के कुलपति बिमल पटेल और बिसाग-सी के महानिदेशक टीपी सिंह ने समझौता ज्ञापनों का आदान-प्रदान किया।
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